November 29, 2022

हवस के चश्मे से नित बदलता रंग दिखता है

हवस के चश्मे से नित बदलता रंग दिखता है 

जो रंगीन दिखता था वो अब बेरंग दिखता है


तस्वीर नहीं बताती सूरज उग रहा या ढल रहा 

बदलते समय के साथ बदलता हाल दिखता है


इतनी दूर तक चले की मंज़िल बेमानी हो गयी

सफर में जो सीखा बस वही अनमोल दिखता है 


मुड़कर जो देखूं तो गलतियाँ साफ़ दिखती हैं

उन्हें करनेवाला मैं नहीं कोई और ही दिखता है


बताते हैं खुले में निकलना अब सेहतमंद नहीं 

अब घर के अंदर हर मौसम एक सा दिखता है


जिस्म पर पड़ी रंगीन धूल जब हटेगी तो देखना   

भोपाली कल जैसा था आज वैसा ही दिखता है 

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