August 21, 2009

बाग़ फिर भी खुशबू से भरा है

वक़्त ने ही ज़ख्मों से भरा है
वक़्त ने ही ज़ख्मों को भरा है

फूलों की पहचान न हो सकी
बाग़ फिर भी खुशबू से भरा है

ज़रा प्यार से टटोल कर देखो
मेरा दिल मोहब्बत से भरा है

कल रात घर से भागे दो आशिक
सुबह मोहल्ला नफरत से भरा है

नशे की हालत में उम्मीद जगी
मयखाना दोस्तों से भरा है

कभी मंदिर में सुकून मिलता था
अब वो रास्ता डर से भरा है

August 02, 2009

ज़िन्दगी मिलेगी

फैसलों और अंजाम से बुनी ज़िन्दगी मिलेगी
घने अंधेरों मे जगमगाती ज़िन्दगी मिलेगी

तमाम ज़िन्दगी एक पांव करते रहे तप जोगी
इस उम्मीद में की वरदान में ज़िन्दगी मिलेगी

क़यामत के उस पार सजी महफिल उनकी
अब क़यामत के उस पार ही ज़िन्दगी मिलेगी

खुशियाँ वफादार हैं लौटकर वापस आएँगी
इनको जितना बांटो उतनी ज़िन्दगी मिलेगी

मुश्किलों से डर कर भागना आदत हो गयी
यूँ ही भागते हुए शायद कंही ज़िन्दगी मिलेगी