January 11, 2017

मैं घर से निकला

मैं घर से निकला
जाने कहाँ को निकला

मौसमी मर्ज़ समझा
दिल का रोग निकला

फूलों से हार निकले
गर्द से पेड़ निकला

कई हमदर्द निकले
बस एक दोस्त निकला

बारिश ने ज़ोर पकड़ा
चुनरी से रंग निकला

जिसे शिद्दत से चाहा
वही बे-वफ़ा निकला

जो था मंज़िल का निशां
वो नया रस्ता निकला

जिसे रकीब समझा
दिल का साफ़ निकला

ज़रा सा दम भर लूँ
फिर मैं भी निकला

भोपाली जाए कहाँ
ये अलग शहर निकला 

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