January 19, 2020

उनसे कहने को कुछ न रहा

उनसे कहने को कुछ न रहा
ये रिश्ता जो था वो न रहा

वो मंदिर धोता, मस्जिद भी
वो किसी धर्म का अब न रहा

शामें सोचते गुज़र जाती हैं
दौर पुराना क्यों और न रहा

गुमनाम आशिक़ कई हुए
हर एक नाम मशहूर न रहा

कुछ तेरा झूठ कुछ मेरा झूठ
सच बेचारा किसी का न रहा

जितना नज़र देख पाती है
पार उसके नज़रिया न रहा

थोड़ा-थोड़ा गलत हुआ बड़ा
तेरा चुप रहना ठीक न रहा

उसे मसीहा जब मान लिया
मुझ पर अब कोई भार न रहा

सर झुकाकर गुज़रे तमाम उम्र
भोपाली तेरा कंही चर्चा न रहा

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