August 15, 2010

कल की शाम

महफिलों में गुजरी कल की शाम
बड़ी तनहा गुजरी कल की शाम

हंस के बोला कई हसीनों से मैं
तुझे बहुत ढूंडा कल की शाम

ये इश्क का खेल भी अजीब है
येही सोचता रहा कल की शाम

आशिकों का यूँही बड़ा नाम है
बेसुध कई मिले कल की शाम

अकेलापन रंग बदलता है
सुर्ख लाल था कल की शाम

August 06, 2010

यादों में जियें कब तक

वीरान राहों पे सफ़र कब तक
खुद से अपनी बातें कब तक

नए मौके हर कदम पे बिछे
चूके मौकों पे रंज कब तक

बरस दिन-दिन कर गुज़र गया
बीते बरस की यादें कब तक

यादों की कीमत क्या आकें
यादों की तिजारत कब तक

मैं नशे मे क्या कुछ कह गया
मेरी बातों का गिला कब तक

वक़्त फिसल गया पता न चला
अब बिखरे लम्हे चुनें कब तक