July 21, 2014

बयां करें

ज़ख्मों का रंग कोई पूछे तो कैसे बयां करें
दाँतों में दर्द दबाये सोते हैं कैसे बयां करें

गर पिसने से ही गेहूं का मान लिखा है
आगे गुंथने और सिकने को क्या बयां करें

किस गुनाह का बोझ जो जलती है हर रात
शमा रो रो के धुआं होती है किस से बयां करें

उनके खत में मांगे उनने हमसे कई जवाब
किस किस की सफाई दें और क्या क्या बयां करें

भोपाली सोचता है तालाब किनारे गुज़र जाती
ज़िन्दगी कहाँ कहाँ ले आई ये किस से बयां करें  

July 19, 2014

इलज़ाम है

हमारी बातों पर बनावट का इलज़ाम है
हमारी मोहब्बत पर फरेब का इलज़ाम है

बहारों का मौसम आया न इस तरफ
मुरझाये फूलों पर बेरहमी का इलज़ाम है

वो सितम भी करते हैं और नाराज़ भी वही
हम पर दर्द खामोशी से सहने का इलज़ाम है

जब हाथ न लगा तो उसकी बहुत आरज़ू रही
उसको छूने से अब हाथ जलने का इलज़ाम है

अब शराब से कितनी उम्मीद करे कोई
उस पर हर शाम दवा न बनने का इलज़ाम है

हम कहाँ कुछ कभी किसी मतलब से कहते हैं
हमारी बातों पर बेमतलब होने का इलज़ाम है

एक और शाम बेचैनी में गुज़र गयी
एक और शाम बेचैनी में जीने का इलज़ाम है

वो और थे जिनके दर्द दीवान हो गए
हम पर छुप छुप कर रोने का इलज़ाम है 

July 01, 2014

सहज प्रेम

महान रॉक बैंड U2 के अँग्रेज़ी गीत, 'Ordinary Love' के अनुवाद का प्रयास कर रहा हूँ ।  आप वह गीत अंग्रेज़ी में यहाँ पढ़ सकते हैं: http://www.u2.com/discography/lyrics/lyric/song/585/


समुद्र की चाह चूमे स्वर्णिम किनारा।
सूर्य की किरणें गरमाए तुम्हारे अंग।
जो खो गया था पहले सौंदर्य सारा, वो फिर पाना चाहे हम को संग।
मैं और नहीं लड़ सकता तुमसे, मैं लड़ ही तो रहा तुम्हारे लिए।
समुद्र ने फेंके कठोर पत्थर पर समय, उन्हें चिकने कर गया हमारे लिए।

हम और क्या गिरेंगे यहाँ से जो, न अनुभव कर सकें सहज प्रेम का।
और नहीं कोई आरोहण संभव, जो हम सामना न कर सकें सहज प्रेम का।

पंछी ऊंचा उड़ते है गर्म आसमान में और करते थोड़ा आराम नर्म हवाओं पर।
वही हवाएँ संभाल लेंगी तुम्हे और मुझे, चलो हम भी बनायें आशियाँ पेड़ों पर।
तुम्हारा दिल मेरी आस्तीन पर है, क्या जादूई कलम से था वहां बना दिया।
वर्षों तक मैं मानता रहा, की यह संसार, जितना मिटाये पर वह न मिटा किया।

क्योंकि हम और क्या गिरेंगे यहाँ से जो, न अनुभव कर सकें सहज प्रेम का।
और नहीं कोई आरोहण संभव, जो हम सामना न कर सकें सहज प्रेम का।

क्या सबल हम इतने, पूर्वाकाँक्षा जो सहज प्रेम की ?

हम और क्या गिरेंगे यहाँ से जो, न अनुभव कर सकें सहज प्रेम का।
और नहीं कोई आरोहण संभव, जो हम सामना न कर सकें सहज प्रेम का।

क्या सबल हम इतने, पूर्वाकाँक्षा जो सहज प्रेम की ?
क्या सबल हम इतने, पूर्वाकाँक्षा जो सहज प्रेम की ?
क्या सबल हम इतने, पूर्वाकाँक्षा जो सहज प्रेम की ?