October 23, 2010

छूटता सा जाता है

घडी घडी न पूछो तुम्हे कितना चाहते हैं
खुद पर यकीन कम होता सा जाता है

समय के साथ हमने तरक्की बहुत की
ऊपर से गिरने का डर बढता सा जाता है

ख्वाबों को रोकने की कोई तरकीब हो
चंचल मन सच से भागता सा जाता है

कोई पूछे तो क्या कहें की क्या पाया
जो भी पाया वो हर दम छूटता सा जाता है

5 comments:

  1. समय के साथ हमने तरक्की बहुत की
    ऊपर से गिरने का डर बढता सा जाता है
    bas maan lijiye iske aagey ham speechless ho gaye..

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  2. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  3. "ऊपर से गिरने का भय बढता जा रहा है "बहुत खूब लिखा है |
    बधाई
    आशा

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  4. समय के साथ हमने तरक्की बहुत की
    ऊपर से गिरने का डर बढता सा जाता है

    बहुत सुंदर... यही हो रहा है...
    समय की इसी तरक्की की बात मेरे ब्लॉग पर भी है.....

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  5. वाह...बहुत बहुत सुन्दर ग़ज़ल ...
    सचबयानी करता हर शेर मन को भाया...

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