May 02, 2010

यूँ दोनों फिर बेपरवाह किसी रात हो न हो

एक बेहद खूबसूरत पुराने फ़िल्मी गीत से पहली लाइन लेकर आगे लिखने की कोशिश...

लग जा गले की फिर ये हसीं रात हो न हो
यूँ दोनों फिर बेपरवाह किसी रात हो न हो

इस बेखुदी का सिला है ये एहसास जो नए
लो ओढ़ लो मेरे जिस्म के लिबास ये नए
मौसम की ये आखिरी सर्द रात हो न हो
यूँ दोनों फिर बेपरवाह किसी रात हो न हो

आँखों से चूम लो हमे होठों से देख लो
सुन लो बदन हाथों से कोई ग़ज़ल कहो
मर्ज़ी की अपने कल ये कायनात हो न हो
यूँ दोनों फिर बेपरवाह किसी रात हो न हो

लग जा गले की फिर ये हसीं रात हो न हो
यूँ दोनों फिर बेपरवाह किसी रात हो न हो