First Posted: 30 Jun, 2010 / Edited: 01 Jul, 2010
आगे बढ़ने के मौके कम मिले
मौकों पे हम बढ़ते कम मिले
कश्तियाँ रेत घिसती रह गयीं
पतवार उठाते बाज़ू कम मिले
कुछ चेहरों में नूर होता है
मेरे माथे पे तारे कम मिले
हमारी बेवफाई गिनी न गयी
हमे वफादार महबूब कम मिले
शाम के अंधेरों से क्या डरे
जिसे दिन में उजाले कम मिले
बहुत सुंदर रचना !!
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी
ReplyDeleteWah Shankar ji.. Adbhut kalpana hai
ReplyDeletedhanyawad baba!
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