April 13, 2010

ख्वाब देखने का मज़ा क्या रह जाए

ख्वाब देखने का मज़ा क्या रह जाए
ख्वाबों के सच होने की शर्त जो रखो

चेहरा उनका शर्म से गुलाबी हो जाए
चेहरे पे उनके हल्का हाथ जो रखो

हसीना हर कोई दिलरुबा हो सकती है
हसीनों के हर कदम पे दिल जो रखो

बात संवरकर अफसाना बन जाती है
बातें होठों से लेकर आँखों पे जो रखो

मुश्किल ये भी है की मैं झुकता नहीं
मुश्किलें तोड़ न दें ये अकड़ जो रखो