January 30, 2017

रह जाएगी

बिना रौशनी शाम अँधेरी रह जाएगी
बेसबब जिंदंगी गुज़रती रह जाएगी

पंखुड़ियों के बीच खुशबू को यूँ न छुपा
ऐ गुल तेरी हस्ती बेमानी रह जाएगी

अपना रुमाल ही गिरा दीजिये वरना
दिल से निकली बात अधूरी रह जाएगी

हसीं जलवों का कोई असर नहीं मुझ पर
अब ये मेरी बात पुरानी रह जाएगी

है रकीब वो मेरा पर आशिक़ भी तो है
उसे हराकर जीत बेमानी रह जाएगी

मेरी आग़ोश में रहोगे यूँही जब तक
हर लम्हे की उम्र बढ़ती रह जाएगी

उनके होठों का रंग ने पूछो मुझे से
गुलाबों की क्यारियां बेरंग रह जाएगी

January 25, 2017

रंग नया है

मौसम में निकले पत्तों का रंग नया है
डाल पर बैठी चिड़ियों का रंग नया है

बदन थकान से टूट रहा है मगर
आँखों पर उतरे जोश का रंग नया है

अफसरी हुक्म से शराब बंद है
प्यालों पर भरे पानी का रंग नया है

हम साथ रहते हैं पर बात नहीं करते
लबों पर हमारी ख़ामोशी का रंग नया है

ये घर अपनों की नज़दीकियां खोज रहा है
यहाँ पर फ़ैली दूरियों का रंग नया है

बच्ची की पायल से फर्श सुरमयी है
कालीन पर पड़ती ख़ुशी का रंग नया है

अच्छे दिन कुछ चल रहे हैं यूँ हमारे
कहने पर हर बात का रंग नया है

यूँ आधी रात को शेर कहने की तलब
ग़ज़ल पर चढ़ती नींद का रंग नया है

January 11, 2017

मैं घर से निकला

मैं घर से निकला
जाने कहाँ को निकला

मौसमी मर्ज़ समझा
दिल का रोग निकला

फूलों से हार निकले
गर्द से पेड़ निकला

कई हमदर्द निकले
बस एक दोस्त निकला

बारिश ने ज़ोर पकड़ा
चुनरी से रंग निकला

जिसे शिद्दत से चाहा
वही बे-वफ़ा निकला

जो था मंज़िल का निशां
वो नया रस्ता निकला

जिसे रकीब समझा
दिल का साफ़ निकला

ज़रा सा दम भर लूँ
फिर मैं भी निकला

भोपाली जाए कहाँ
ये अलग शहर निकला