March 14, 2010

क्या पाते ?

जो अपनी किस्मत खुद लिख पाते
जो चाही क्या वो हर चीज़ पाते ?

आसमान को हाथों से नापा कई बार
पर होते तो क्या वो गहराई छु पाते ?

इज़हार की हर कोशिश अधूरी रही
वो पहल करते तो क्या कह पाते ?

दोस्तों के हज़ार एब हमे मालूम हैं
हम कह दें तो क्या वो सुन पाते ?

मौकापरस्त थे तो आज यहाँ हैं
इमानदार होते तो जाने क्या पाते ?

March 09, 2010

ये क्या कम है

ये क्या कम है
की अब तनहा नहीं होते कभी
तेरी यादें और हम हैं

मौसम चंचल है
रिमझिम बरस पड़ता है कभी
आखें इस वजह नम हैं

ख्वाब बंजारा है
यूँ ही आवारा भटकता है कभी
बस इसलिए नींदें कम हैं

वक़्त तो राही है
ये मेरे रोके से रुका है कभी
रुके हुए तो बस हम हैं