June 29, 2014

मिलता है


तुम से मिलकर हौसला मिलता है
कोई हमसे भी बेवज़ह मिलता है

आशिक़ के जनाज़े में किसी को टटोलो
हर शख्स ही एक आशिक़ मिलता है

ये बेसब्र भीड़ हर दिन कहाँ जाती है
इन्हे क्या मिले जो इन्हे सब्र मिलता है

रात जब नींद में तुझे ढूंढते हैं ये हाथ
तेरी ज़ुल्फ़ों से महका तकिया मिलता है

हमसे पूछो तो हम अपना पता देते हैं
हमशक्ल हमारा भोपाल में मिलता है 

तुम्हे देखकर बहुत सुकून मिलता है

तुम्हारे नाक नक्श में अतीत मिलता है
नन्ही आखों में मुस्तक़बिल मिलता है

तुम्हारे छोटे छोटे हाथों में
बड़े कारनामों का इशारा मिलता है

यूं तो ख़ून का रंग एक है  सब का
अपना खून बस अपनों से मिलता है

नींद में कभी कभी मुस्कुराते हो तुम
तुम्हे देखकर बहुत सुकून मिलता है

कभी सोचा न था की मेरे अंदर भी
जज़्बातों का एक समंदर मिलता है