September 10, 2011

क्या करते

गर शराब न होती तो क्या करते
तुझे याद करते ज़ाया हुआ करते

गली में मेला लगा लोग मिले
हम वहां जाकर भी क्या करते

उनसे मिलने का वादा तोड़ दिया
डरे हुए आशिक और क्या करते

अक्सर अपनी बेमानी पे ग़म होता है
सोचते हैं काबिल होते तो क्या करते

कुछ मुरीद मेरे आज भी हैं
कहते हैं जो चाहे जाने क्या करते

जाने मेरा लिखा कौन पढ़े
पर दिल में रखकर भी क्या करते

डूबता जा रहा हूँ मैं

यूँ खुद से भागने की कोशिश में
देखो खुद में ही कितना
डूबता जा रहा हूँ मैं
अतीत के गहरे पानी में
डूबता जा रहा हूँ मैं
आज मैं जो भी हूँ
जो देखा सीखा इतने बरस
उनके छोटे छोटे तिनकों से
बनी हस्ती मेरी
मेरी हस्ती के इन तिनकों को
बटोरता हुआ इनमे ही
डूबता जा रहा हूँ मैं
आँखें बंद करके चलो
तो रास्ते का डर नहीं रहता
पर पहुंचोगे कहाँ
इसका भी ठिकाना नहीं फिर
जो सोची मंजिल पे पहुँचने की हो लालसा
आँखें तो खुली रखनी पड़ेंगी
अपने रास्ते के नजारों में
डूबता जा रहा हूँ मैं
जाने कहाँ भाग रहा हूँ मैं
जाने क्या बटोर रहा हूँ मैं
जाने क्या देख रहा हूँ मैं
बस, डूबता जा रहा हूँ मैं