April 26, 2009

यादों की मुट्टी खोलो

मुझे भूलना बहुत आसान है
कोशिश कर के देखो ज़रा
जज़्बात वक्त का मेहमान है

पिंजडा खोलो, पंछी उड़ जाएगा
जब यादों की मुट्टी खोलोगी
मेरा हर निशान मिट जाएगा

न सोचो क्या होगा बिन मेरे
तुम सावन, पथझड बसेरा मेरा
सोचो क्या होगा संग मेरे

आयेंगे हसीं मोड़ रस्ते में कई
ख्वाबों में जियोगी यूँ ही कब तक
साथ देंगे तुम्हारा हमसफ़र कई

मान लो एक दौर था जो गुज़र गया
रास्ता भटक आ पहुँचा था तेरे द्वार
मोसम था एक, जो अब बदल गया

April 19, 2009

क्या करे?

दोपहर की गर्मी मे
यूँ ही अकेला मन, क्या करे?

अलसाई सी सोच, थकी सी,
नींद को न छोड़ती पलकें,
पसीने से तर बदन
बिना कुछ किए, क्या करे?

नमी को तरसते होठ, प्यासे
बे-इन्तेहाँ रौशनी से घिरा
वीरानों का अन्धेरा
बसना चाहे तो क्या करे?

शब्दों की लडियां,
गर न बने कविता, क्या करे?

April 14, 2009

मौसम बदल सा गया

तुमने जो छुआ, उमीदों ने छु लिया
महक उठा बदन, रंग गए ख्वाब
ख्यालों ने कविता का रूप ले लिया

मौसम बदल सा गया जो तुमने
छेडा एक गीत भूला सा, जैसे
हवाओं ने खोया सुर पहचान लिया

की यूँ भी होता है एक शक्स के
जीवन में आ जाने से किसी के
इस बात को आज जान लिया