खुशबू समेटते हुए हवा कहाँ चली
मौसम बदलते हुए हवा कहाँ चली
ख़्वाबों का पिटारा पलकों पे उठाये
उम्मीदों के रास्ते हवा कहाँ चली
पहचाने से चेहरे यादों से चुनकर
राहों पे मिलाती हवा कहाँ चली
एक बच्चे की हंसी परचम बनाये
ग़म को मिटाती हवा कहाँ चली
घरोंदों में बैठे अरमानों के पंछी
उन्हें साथ उड़ाते हवा कहाँ चली
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