क्यों जोड़ते हो शब्दों को
क्यों कहते हो कविता
किस काम का ये हिसाब
दिन बीता सो बीता
अनजाने में ही कभी
शब्दों में निकल आएगा
जो छुपा कर रखा है कंही
जग ज़ाहिर हो जायेगा
जिस ह्रदय में जितना मर्म
उतने उसके शब्द सरल
जितनी उपमा करे कवि
उतने उसके भाव तरल
क्यों लड़ते हो सपनो से
क्यों छिपाते हो नींदों में
दिन में वही तो खोजते हो
जो ढूंडा करते हो रातों में