August 24, 2014

वहीँ मेरी सुबहें और शामें होतीं हैं

यादें आदमी के साथ दफ़न होतीं हैं
शायद आँखें उसके बाद भी रोतीं हैं

उनकी खुशबू से हम दूर रहें को कैसे
जीने के लिए साँसें ज़रूरी होतीं हैं

उनकी आँखों में सूरज भी है महताब भी
वहीँ मेरी सुबहें और शामें होतीं हैं

मज़ाक बने तो क्या बड़ी कीमत दी
बेखुदी की घड़ियाँ बेशकीमती होतीं हैं

भोपाली से पूछो उसकी मिट्टी कहाँ की
शहर वही जहाँ खूबसूरत झीलें होतीं हैं  

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