यादें आदमी के साथ दफ़न होतीं हैं
शायद आँखें उसके बाद भी रोतीं हैं
उनकी खुशबू से हम दूर रहें को कैसे
जीने के लिए साँसें ज़रूरी होतीं हैं
उनकी आँखों में सूरज भी है महताब भी
वहीँ मेरी सुबहें और शामें होतीं हैं
मज़ाक बने तो क्या बड़ी कीमत दी
बेखुदी की घड़ियाँ बेशकीमती होतीं हैं
भोपाली से पूछो उसकी मिट्टी कहाँ की
शहर वही जहाँ खूबसूरत झीलें होतीं हैं
शायद आँखें उसके बाद भी रोतीं हैं
उनकी खुशबू से हम दूर रहें को कैसे
जीने के लिए साँसें ज़रूरी होतीं हैं
उनकी आँखों में सूरज भी है महताब भी
वहीँ मेरी सुबहें और शामें होतीं हैं
मज़ाक बने तो क्या बड़ी कीमत दी
बेखुदी की घड़ियाँ बेशकीमती होतीं हैं
भोपाली से पूछो उसकी मिट्टी कहाँ की
शहर वही जहाँ खूबसूरत झीलें होतीं हैं
सुंदर गज़ल.
ReplyDeletedhanyawad rakesh ji
DeleteYear Bahut hee unndda likha hai....
ReplyDeleteThank you 😊!
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