September 20, 2025

अपनी है

यहां धूल बहुत है मगर मिट्ठी अपनी है 
यहां शोर बहुत है मगर भीड़ अपनी है 

मेरी हर जीत मे शामिल लोग बहुत हैं 
हर हार मगर केवल मेरी अपनी है  

जब दूसरों के सपने अपने हो गए 
उन्हें पूरा करने की ज़िम्मेदारी अपनी है 

खूबसूरत रास्ते देखती है मंज़िल नहीं 
माना बहकी हुई है मगर नज़र अपनी है 

जो सोये हुए हैं, छोड़ो, उन्हें सोने दो 
हम जागे हुए हैं, लो, ये सुबह अपनी है 

बिना सरहदों की दुनियाँ हम मांगते हैं
ऊँची दीवारों में घिरी मगर कोठी अपनी है

इतना दूर चले आये हैं इस रस्ते पर हम 
इस पर ही चलते रहेंगे मजबूरी अपनी है 

अब फूलों को देखने कोई नहीं रुकता
बगिया में खिली हर काली मगर अपनी है

भोपाली कई बरस हुए परदेसी हो गया 
मगर वो शहर अपना वो गालियाँ अपनी है