कुछ शेर प्रस्तुत हैं। उम्मीद है पसंद आयेंगे।
आज किताबों में सहेज के रखते हैं सूखे हुए फूल
जो कभी बागीचों मे कलियाँ रोंधकर गुज़र जाते थे
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जब हाथ काँपने लगे जाम उठाते तो रुक जाता हूँ
मयखाने के बाहर हमप्याला बेईमान हो जाते हैं
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पहाडों में गुज़रे कुछ दिन तो वंही रह जाने को मन किया
मैदानों में पता ही नहीं चलता सूरज कंहा डूब जाता है
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मौसम की बाजीगरी ये की मिजाज़, माहौल सब बदल दे
हम अपनी तसल्ली को घरोंदों में बसेरा कर लेते हैं
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आज किताबों में सहेज के रखते हैं सूखे हुए फूल
ReplyDeleteजो कभी बागीचों मे कलियाँ रोंधकर गुज़र जाते थे
lajwab likha hai.... bahut hi badhiya