August 21, 2009

बाग़ फिर भी खुशबू से भरा है

वक़्त ने ही ज़ख्मों से भरा है
वक़्त ने ही ज़ख्मों को भरा है

फूलों की पहचान न हो सकी
बाग़ फिर भी खुशबू से भरा है

ज़रा प्यार से टटोल कर देखो
मेरा दिल मोहब्बत से भरा है

कल रात घर से भागे दो आशिक
सुबह मोहल्ला नफरत से भरा है

नशे की हालत में उम्मीद जगी
मयखाना दोस्तों से भरा है

कभी मंदिर में सुकून मिलता था
अब वो रास्ता डर से भरा है

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