वीरान राहों पे सफ़र कब तक
खुद से अपनी बातें कब तक
नए मौके हर कदम पे बिछे
चूके मौकों पे रंज कब तक
बरस दिन-दिन कर गुज़र गया
बीते बरस की यादें कब तक
यादों की कीमत क्या आकें
यादों की तिजारत कब तक
मैं नशे मे क्या कुछ कह गया
मेरी बातों का गिला कब तक
वक़्त फिसल गया पता न चला
अब बिखरे लम्हे चुनें कब तक
सुंदर अभिव्यक्ति .. प्रतीक्षा की भी एक सीमा होती है !!
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी
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