महफिलों में गुजरी कल की शाम
बड़ी तनहा गुजरी कल की शाम
हंस के बोला कई हसीनों से मैं
तुझे बहुत ढूंडा कल की शाम
ये इश्क का खेल भी अजीब है
येही सोचता रहा कल की शाम
आशिकों का यूँही बड़ा नाम है
बेसुध कई मिले कल की शाम
अकेलापन रंग बदलता है
सुर्ख लाल था कल की शाम
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