खुल के जीने का एहसास क्या था
तेरे साथ होने का एहसास क्या था
तुझे भूल कर अगर मैं खुश हूँ
तो तुझे पाने का एहसास क्या था
तेरे ख़त जलकर ख़त्म हो जाते
तो उन्हें पढने का एहसास क्या था
जो मयखाने में गुजरी शाम आवारा
तो तेरे इश्क का एहसास क्या था
ज़माने हँसे मुझ पर तो ग़म क्या
तेरे मुस्कुराने का एहसास क्या था
दबे हुए तकिये मे अब भी कुछ ख्वाब
उन्हें संग देखने का एहसास क्या था
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