गर शराब न होती तो क्या करते
तुझे याद करते ज़ाया हुआ करते
गली में मेला लगा लोग मिले
हम वहां जाकर भी क्या करते
उनसे मिलने का वादा तोड़ दिया
डरे हुए आशिक और क्या करते
अक्सर अपनी बेमानी पे ग़म होता है
सोचते हैं काबिल होते तो क्या करते
कुछ मुरीद मेरे आज भी हैं
कहते हैं जो चाहे जाने क्या करते
जाने मेरा लिखा कौन पढ़े
पर दिल में रखकर भी क्या करते
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