June 09, 2015

छुपाता फिरता हूँ

एक गुनाह छुपाता फिरता हूँ
खुद से मुँह छुपाता फिरता हूँ

सीने पे बहादुरी के तमगे लिए
पीठ के घाव छुपाता फिरता हूँ

आखों में धूल का बहन करके
अपने आँसू छुपाता फिरता हूँ

सारे दोस्त शहर खाली कर चले
गैरों से ये बात छुपाता फिरता हूँ

सबके पीने की वजह अलग
अपनी सबसे छुपाता फिरता हूँ

तुम्हे ढूंढता हूँ बिस्तर में हर रात
दिन में तन्हाई छुपाता फिरता हूँ
 

2 comments:

  1. अच्छी रचना

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 23 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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