March 23, 2016

लौट आये

वक़्त की फितरत ऐसी बीते फिर न लौट आये
अपने पुराने लौट आएं तो वक़्त पुराना लौट आये

एक मुसाफिर सुबह की धुन में घर भुलाये बढ़ा चले
एक मुसाफिर सुबह का भूला शाम हुए घर लौट आये

इज़हार-ए-मोहब्बत का खत भेज तो दें पर डरते हैं
हाल हमारा क्या होगा जो जवाब उनका लौट आये

अगर धर्म ज़ात देख कर मोहब्बत की तो सौदा किया
इश्क़ के ऐसे बाज़ार से हम खली हाथ ही लौट आये

जब तन्हा थे तो महफ़िलों को तरसते थे और अब
दोस्तों ने बुलावा भेजा और हम घर को लौट आये 

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