रंग और खुशबू से परे किसी ने न देखा
खिले फूलों को रोते हुए किसी ने न देखा
अपने आसपास की रौशनी में यूँ मगन
दूर के गहरे अँधेरे को किसी ने न देखा
मैंने कह दिया खरीदने निकला हूँ पूरा बाज़ार
मेरी जेब में चंद सिक्के हैं किसी ने न देखा
हमे ग़ुलाम-ए-हुस्न कहा तो क्या गलत कहा
उनकी नाफरमानी करते हमे किसी ने न देखा
आशिक़ की मज़ार पे शराबी रुक जाते हैं कभी
बड़े दिनों से उसे मयखाने में किसी ने न देखा
गैरों से उसे पूरा करने ही उम्मीद कैसे करूँ
जो मेरा ख़्वाब है वो और किसी ने न देखा
हम पिछले महीने की कहा-सुनी पर खफा हैं
वक़्त बरसों आगे बढ़ गया किसी ने न देखा
खिले फूलों को रोते हुए किसी ने न देखा
अपने आसपास की रौशनी में यूँ मगन
दूर के गहरे अँधेरे को किसी ने न देखा
मैंने कह दिया खरीदने निकला हूँ पूरा बाज़ार
मेरी जेब में चंद सिक्के हैं किसी ने न देखा
हमे ग़ुलाम-ए-हुस्न कहा तो क्या गलत कहा
उनकी नाफरमानी करते हमे किसी ने न देखा
आशिक़ की मज़ार पे शराबी रुक जाते हैं कभी
बड़े दिनों से उसे मयखाने में किसी ने न देखा
गैरों से उसे पूरा करने ही उम्मीद कैसे करूँ
जो मेरा ख़्वाब है वो और किसी ने न देखा
हम पिछले महीने की कहा-सुनी पर खफा हैं
वक़्त बरसों आगे बढ़ गया किसी ने न देखा