दोपहर की गर्मी मे
यूँ ही अकेला मन, क्या करे?
अलसाई सी सोच, थकी सी,
नींद को न छोड़ती पलकें,
पसीने से तर बदन
बिना कुछ किए, क्या करे?
नमी को तरसते होठ, प्यासे
बे-इन्तेहाँ रौशनी से घिरा
वीरानों का अन्धेरा
बसना चाहे तो क्या करे?
शब्दों की लडियां,
गर न बने कविता, क्या करे?
No comments:
Post a Comment