October 25, 2010

एहसास

खुल के जीने का एहसास क्या था
तेरे साथ होने का एहसास क्या था

तुझे भूल कर अगर मैं खुश हूँ
तो तुझे पाने का एहसास क्या था

तेरे ख़त जलकर ख़त्म हो जाते
तो उन्हें पढने का एहसास क्या था

जो मयखाने में गुजरी शाम आवारा
तो तेरे इश्क का एहसास क्या था

ज़माने हँसे मुझ पर तो ग़म क्या
तेरे मुस्कुराने का एहसास क्या था

दबे हुए तकिये मे अब भी कुछ ख्वाब
उन्हें संग देखने का एहसास क्या था

October 23, 2010

छूटता सा जाता है

घडी घडी न पूछो तुम्हे कितना चाहते हैं
खुद पर यकीन कम होता सा जाता है

समय के साथ हमने तरक्की बहुत की
ऊपर से गिरने का डर बढता सा जाता है

ख्वाबों को रोकने की कोई तरकीब हो
चंचल मन सच से भागता सा जाता है

कोई पूछे तो क्या कहें की क्या पाया
जो भी पाया वो हर दम छूटता सा जाता है

October 22, 2010

पल पल ज़िन्दगी की गवाही खुद ही

यूँ अरमानो की तबाही खुद ही
पल पल ज़िन्दगी की गवाही खुद ही

तेरी वफादारी के झूठे किस्से
बैठे बैठे यारों को सुनाते खुद ही

सर्द हवाओं में हौसला इस तरह
तिल तिल कर जलते जाते खुद ही

मीलों चले कोई राहगीर न मिला
रुक रुक के रास्तों से बातें खुद ही

कौन कहे की वक़्त यूँ ही ज़ाया किया
पल पल का हिसाब रखते चले खुद ही