खुल के जीने का एहसास क्या था
तेरे साथ होने का एहसास क्या था
तुझे भूल कर अगर मैं खुश हूँ
तो तुझे पाने का एहसास क्या था
तेरे ख़त जलकर ख़त्म हो जाते
तो उन्हें पढने का एहसास क्या था
जो मयखाने में गुजरी शाम आवारा
तो तेरे इश्क का एहसास क्या था
ज़माने हँसे मुझ पर तो ग़म क्या
तेरे मुस्कुराने का एहसास क्या था
दबे हुए तकिये मे अब भी कुछ ख्वाब
उन्हें संग देखने का एहसास क्या था
October 26, 2010
October 24, 2010
छूटता सा जाता है
घडी घडी न पूछो तुम्हे कितना चाहते हैं
खुद पर यकीन कम होता सा जाता है
समय के साथ हमने तरक्की बहुत की
ऊपर से गिरने का डर बढता सा जाता है
ख्वाबों को रोकने की कोई तरकीब हो
चंचल मन सच से भागता सा जाता है
कोई पूछे तो क्या कहें की क्या पाया
जो भी पाया वो हर दम छूटता सा जाता है
खुद पर यकीन कम होता सा जाता है
समय के साथ हमने तरक्की बहुत की
ऊपर से गिरने का डर बढता सा जाता है
ख्वाबों को रोकने की कोई तरकीब हो
चंचल मन सच से भागता सा जाता है
कोई पूछे तो क्या कहें की क्या पाया
जो भी पाया वो हर दम छूटता सा जाता है
October 23, 2010
पल पल ज़िन्दगी की गवाही खुद ही
यूँ अरमानो की तबाही खुद ही
पल पल ज़िन्दगी की गवाही खुद ही
तेरी वफादारी के झूठे किस्से
बैठे बैठे यारों को सुनाते खुद ही
सर्द हवाओं में हौसला इस तरह
तिल तिल कर जलते जाते खुद ही
मीलों चले कोई राहगीर न मिला
रुक रुक के रास्तों से बातें खुद ही
कौन कहे की वक़्त यूँ ही ज़ाया किया
पल पल का हिसाब रखते चले खुद ही
पल पल ज़िन्दगी की गवाही खुद ही
तेरी वफादारी के झूठे किस्से
बैठे बैठे यारों को सुनाते खुद ही
सर्द हवाओं में हौसला इस तरह
तिल तिल कर जलते जाते खुद ही
मीलों चले कोई राहगीर न मिला
रुक रुक के रास्तों से बातें खुद ही
कौन कहे की वक़्त यूँ ही ज़ाया किया
पल पल का हिसाब रखते चले खुद ही
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