May 06, 2011

तुम्हे ही हमसफ़र मान बैठे

मसला हल करने जो बैठे
चमन को सरहदों से बाँट बैठे

तुम जो कुछ साथ चले
तुम्हे ही हमसफ़र मान बैठे

कश्तियाँ टूट के बिखर गयी
नाविक तिनके की आस पे बैठे

दिन में टूटा जो मजदूर
शाम को तारों की छाँव में बैठे

नायक की छवि तो उभरे
कब तक किरदार लिए बैठे

No comments:

Post a Comment