क्या गुजरी हम पर बीते साल तो पूछो
इतनी मुद्दत बाद मिले हो हाल तो पूछो
दम टूटा दर्द भरी सिसकियाँ निकलीं
कितने खंजर हुए सीने के पार तो पूछो
तेरी महफ़िल में आये तो दोस्तों के साथ
घर लौटे हम कितने सूने हाल तो पूछो
आशिक ख़ाक छाने तो काफिर कहते हो
उसे कब ज़रुरत मस्जिदों की ये तो पूछो
इतनी मुद्दत बाद मिले हो हाल तो पूछो
दम टूटा दर्द भरी सिसकियाँ निकलीं
कितने खंजर हुए सीने के पार तो पूछो
तेरी महफ़िल में आये तो दोस्तों के साथ
घर लौटे हम कितने सूने हाल तो पूछो
आशिक ख़ाक छाने तो काफिर कहते हो
उसे कब ज़रुरत मस्जिदों की ये तो पूछो