जिस रात सुबह की आस छूट जाये
खुदा यूँ करना की मेरी नींद न खुले
अपने जब ख्वाब के किरदार न रहें
उन्हें बिस्तर पे हाथ जब न टटोले
जिस रात खुदगर्जी हावी हो जाये
खुदा यूँ करना की मेरी नींद न खुलेजब सफ़र से बड़ी हो जाये मंजिल
जब ईमान की कीमत आंकने लगें
जिस रात करवट पे सिक्के गिर जाये
खुदा यूँ करना की मेरी नींद न खुले
जब बिन दोस्तों के उठा लें जाम
बेसुध होने की तलब में पिया करें
जिस रात साकी से मन भर जाये
खुदा यूँ करना की मेरी नींद न खुलेजिस रात सुबह की आस छूट जाये
खुदा यूँ करना की मेरी नींद न खुले
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