मकान की दीवारें बेरंग हैं तो क्या
आँगन में लगा आम का पेड़ हरा है
एक चम्मच शक्कर गिरी मेज़ पर
उस तरफ़ चीटियों का कारवां चला है
मुमकिन ये भी है की वो बेवफा न हो
यही सोच आशिक दुनिया से चला है
पतझड़ मे फूल मुरझा गए तो क्या
ये चमन अब भी उम्मीदों से भरा है
सरकारें बाट रही हैं मुफ्त मे रोटियां
मजदूरों के औजारों में क्या धरा है
अकेला था तो चाहा कोई हाथ थाम ले
अब मेले में नयन-नक्श जांच रहा है
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