न जाने किस उम्मीद पे इन्तिज़ार किए जाते हैं
जो शाम ख़त्म हो तो सुबह तक जिए जाते हैं
ये मोतियों का हार विरासत में मिला है मुझे
चंद गज़लें और इसे अपनी वसीयत किए जाते हैं
गुनाहों का होगा हिसाब तो कहाँ छिपेंगे जाकर
इस डर से खुदा को हर रात सफाई दिए जाते हैं
आशिकी का आलम ये की शराब भी बेअसर
मयखाने में जोगी बस उनका नाम लिए जाते हैं
मोर नाचने लगे बन में तो सावन की आस जगी
अब बेफिक्री से पानी के और घूँट पिए जाते हैं
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