Some thoughts cropped up when I read about the historic ruling by the Delhi High Court yesterday that legalised homosexuality in India. I think anything that reinforces equality and promotes love is always welcome, more so in the troubled times that we live in. Shaped the thoughts into a ghazal. Hope you like it.
प्यार को परिभाषित करने की कोशिश बेकार
स्वरुप व अभिव्यक्ति पर बाटने की कोशिश बेकार
नंगे जिस्म से शर्माती है नंगी सोच
तस्वीरों को चुनर से ढकने की साजिश बेकार
मौसम की बहार सभी फूलों से है
बस गुलाब के बागीचे बनाने की कोशिश बेकार
हर दिन दे रहा कोई सड़क पे धरना
इन सड़कों से मंजिल पाने की कोशिश बेकार
मेरे पहनावे और सोच से तकलीफ तुमको
पर मेरे ख्वाबों पे गुंडाराज की कोशिश बेकार
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