July 01, 2009

चेहरे

सरहदों पर दोस्ती को तरसते चेहरे
बंदूकों की नाल से बरसते चेहरे

भीड़ बीच में फसा आदमी ये क्या जाने
ले जाए उसको खींच कहाँ भटकते चेहरे

पतझड़ मे बागीचा सारा सूख गया है
बचे धूल मे दौड़ लगाते हँसते चेहरे

जब सुनाई इंकिलाब की आंखों देखी
दिलासे हलके, भारी पड़े तड़पते चेहरे

अजायबघर में भीड़ जुटाती ये शमशीर
झांके उससे बीते युग के गिरते चेहरे

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