मुसाफिरों ने महकते हुए चमन देखे हैं
वतन की याद में कई वतन देखे हैं
साकी की हर चाल पे दुगने दाव लगे
शेहेंशाह औ' फ़कीर दोनों मगन देखे हैं
है शुक्र की न देखा ये सड़ता समाज
इन्क़लाबी आँखों ने बस कफ़न देखे हैं
गुफ्तगू का हुनर मुझमे नहीं तो क्या
मैंने अरमानो से सुलगते बदन देखे हैं
राम रटन की धुन भूले वैरागी जोगी
मंदिर की सीढी पर मृग नयन देखे हैं
बहुत ही अलग ढ्ंग से व्यक्त की गई है भावनाओ को अतिसुन्दर
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