July 20, 2009

मुसाफिरों ने महकते हुए चमन देखे हैं

मुसाफिरों ने महकते हुए चमन देखे हैं
वतन की याद में कई वतन देखे हैं

साकी की हर चाल पे दुगने दाव लगे
शेहेंशाह औ' फ़कीर दोनों मगन देखे हैं

है शुक्र की न देखा ये सड़ता समाज
इन्क़लाबी आँखों ने बस कफ़न देखे हैं

गुफ्तगू का हुनर मुझमे नहीं तो क्या
मैंने अरमानो से सुलगते बदन देखे हैं

राम रटन की धुन भूले वैरागी जोगी
मंदिर की सीढी पर मृग नयन देखे हैं

1 comment:

  1. बहुत ही अलग ढ्ंग से व्यक्त की गई है भावनाओ को अतिसुन्दर

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