August 02, 2009

ज़िन्दगी मिलेगी

फैसलों और अंजाम से बुनी ज़िन्दगी मिलेगी
घने अंधेरों मे जगमगाती ज़िन्दगी मिलेगी

तमाम ज़िन्दगी एक पांव करते रहे तप जोगी
इस उम्मीद में की वरदान में ज़िन्दगी मिलेगी

क़यामत के उस पार सजी महफिल उनकी
अब क़यामत के उस पार ही ज़िन्दगी मिलेगी

खुशियाँ वफादार हैं लौटकर वापस आएँगी
इनको जितना बांटो उतनी ज़िन्दगी मिलेगी

मुश्किलों से डर कर भागना आदत हो गयी
यूँ ही भागते हुए शायद कंही ज़िन्दगी मिलेगी

1 comment:

  1. wah bahut khub,
    kya likha hai,

    "kayamat ke us par sazi hai mehfil unki,
    ab kayamat ke us par hi zindagi milegi"

    wonderful..

    ReplyDelete