August 26, 2014

Light of Your Memories

Attempting to translate, from Hindi to English, Dr. Bashir Badr's beautiful ghazal "उजाले अपनी यादों के (light of your memories)" which appeared in his book by the same name. You can read it here.


Let a golden goblet of the morning my heart be
Let the evening lit up by the lamps that my eyes be

May sometime the moon descend from the sky and be a cup of wine
and a beautiful evening to your name be

Strange were the times, and so closed the trades of heart
The mansion of love, however it sold may be

In the journey of the seas, you summon me in a way
that rushes the winds and wanes the day that be

I know the dwelling place where
the bird that fails to touch the sky would be

Let the light of your memories be with me
At the evening of life who knows which lane I'd be

August 24, 2014

वहीँ मेरी सुबहें और शामें होतीं हैं

यादें आदमी के साथ दफ़न होतीं हैं
शायद आँखें उसके बाद भी रोतीं हैं

उनकी खुशबू से हम दूर रहें को कैसे
जीने के लिए साँसें ज़रूरी होतीं हैं

उनकी आँखों में सूरज भी है महताब भी
वहीँ मेरी सुबहें और शामें होतीं हैं

मज़ाक बने तो क्या बड़ी कीमत दी
बेखुदी की घड़ियाँ बेशकीमती होतीं हैं

भोपाली से पूछो उसकी मिट्टी कहाँ की
शहर वही जहाँ खूबसूरत झीलें होतीं हैं  

August 21, 2014

नज़र आता है

हर एक नज़ारे का कोई एक रंग खूब नज़र आता है
उनकी नज़रों में हर नज़ारा हर रंग नज़र आता है

उन्हें तोफहे में फूल दूँ, पायल या दीवान-ए-मीर
फूल बेरंग, पायल बेसुर, मीर बेवज़न नज़र आता है

उनकी गलियों में पड़े रहते हैं यूँ तो सुबहो-शाम
छुप जाते हैं जब खिड़की पर उनका साया नज़र आता है

एक खत लिखकर कर दिया हवाओं के हवाले
देखें उनका जवाब बिजली में या बारिश में नज़र आता है

उनकी बेवफाई के किस्से सूनाकर खबरदार करते कई
उनका खामोश पुराना आशिक़ हौसला बढ़ाता नज़र आता है

इन नज़ारों को मौसम ने बहुत संवारा है लेकिन
हम क्या करें हमें बस उनका ही नज़ारा हसीन नज़र आता है 

July 21, 2014

बयां करें

ज़ख्मों का रंग कोई पूछे तो कैसे बयां करें
दाँतों में दर्द दबाये सोते हैं कैसे बयां करें

गर पिसने से ही गेहूं का मान लिखा है
आगे गुंथने और सिकने को क्या बयां करें

किस गुनाह का बोझ जो जलती है हर रात
शमा रो रो के धुआं होती है किस से बयां करें

उनके खत में मांगे उनने हमसे कई जवाब
किस किस की सफाई दें और क्या क्या बयां करें

भोपाली सोचता है तालाब किनारे गुज़र जाती
ज़िन्दगी कहाँ कहाँ ले आई ये किस से बयां करें  

July 19, 2014

इलज़ाम है

हमारी बातों पर बनावट का इलज़ाम है
हमारी मोहब्बत पर फरेब का इलज़ाम है

बहारों का मौसम आया न इस तरफ
मुरझाये फूलों पर बेरहमी का इलज़ाम है

वो सितम भी करते हैं और नाराज़ भी वही
हम पर दर्द खामोशी से सहने का इलज़ाम है

जब हाथ न लगा तो उसकी बहुत आरज़ू रही
उसको छूने से अब हाथ जलने का इलज़ाम है

अब शराब से कितनी उम्मीद करे कोई
उस पर हर शाम दवा न बनने का इलज़ाम है

हम कहाँ कुछ कभी किसी मतलब से कहते हैं
हमारी बातों पर बेमतलब होने का इलज़ाम है

एक और शाम बेचैनी में गुज़र गयी
एक और शाम बेचैनी में जीने का इलज़ाम है

वो और थे जिनके दर्द दीवान हो गए
हम पर छुप छुप कर रोने का इलज़ाम है 

July 01, 2014

सहज प्रेम

महान रॉक बैंड U2 के अँग्रेज़ी गीत, 'Ordinary Love' के अनुवाद का प्रयास कर रहा हूँ ।  आप वह गीत अंग्रेज़ी में यहाँ पढ़ सकते हैं: http://www.u2.com/discography/lyrics/lyric/song/585/


समुद्र की चाह चूमे स्वर्णिम किनारा।
सूर्य की किरणें गरमाए तुम्हारे अंग।
जो खो गया था पहले सौंदर्य सारा, वो फिर पाना चाहे हम को संग।
मैं और नहीं लड़ सकता तुमसे, मैं लड़ ही तो रहा तुम्हारे लिए।
समुद्र ने फेंके कठोर पत्थर पर समय, उन्हें चिकने कर गया हमारे लिए।

हम और क्या गिरेंगे यहाँ से जो, न अनुभव कर सकें सहज प्रेम का।
और नहीं कोई आरोहण संभव, जो हम सामना न कर सकें सहज प्रेम का।

पंछी ऊंचा उड़ते है गर्म आसमान में और करते थोड़ा आराम नर्म हवाओं पर।
वही हवाएँ संभाल लेंगी तुम्हे और मुझे, चलो हम भी बनायें आशियाँ पेड़ों पर।
तुम्हारा दिल मेरी आस्तीन पर है, क्या जादूई कलम से था वहां बना दिया।
वर्षों तक मैं मानता रहा, की यह संसार, जितना मिटाये पर वह न मिटा किया।

क्योंकि हम और क्या गिरेंगे यहाँ से जो, न अनुभव कर सकें सहज प्रेम का।
और नहीं कोई आरोहण संभव, जो हम सामना न कर सकें सहज प्रेम का।

क्या सबल हम इतने, पूर्वाकाँक्षा जो सहज प्रेम की ?

हम और क्या गिरेंगे यहाँ से जो, न अनुभव कर सकें सहज प्रेम का।
और नहीं कोई आरोहण संभव, जो हम सामना न कर सकें सहज प्रेम का।

क्या सबल हम इतने, पूर्वाकाँक्षा जो सहज प्रेम की ?
क्या सबल हम इतने, पूर्वाकाँक्षा जो सहज प्रेम की ?
क्या सबल हम इतने, पूर्वाकाँक्षा जो सहज प्रेम की ?

June 29, 2014

मिलता है


तुम से मिलकर हौसला मिलता है
कोई हमसे भी बेवज़ह मिलता है

आशिक़ के जनाज़े में किसी को टटोलो
हर शख्स ही एक आशिक़ मिलता है

ये बेसब्र भीड़ हर दिन कहाँ जाती है
इन्हे क्या मिले जो इन्हे सब्र मिलता है

रात जब नींद में तुझे ढूंढते हैं ये हाथ
तेरी ज़ुल्फ़ों से महका तकिया मिलता है

हमसे पूछो तो हम अपना पता देते हैं
हमशक्ल हमारा भोपाल में मिलता है 

तुम्हे देखकर बहुत सुकून मिलता है

तुम्हारे नाक नक्श में अतीत मिलता है
नन्ही आखों में मुस्तक़बिल मिलता है

तुम्हारे छोटे छोटे हाथों में
बड़े कारनामों का इशारा मिलता है

यूं तो ख़ून का रंग एक है  सब का
अपना खून बस अपनों से मिलता है

नींद में कभी कभी मुस्कुराते हो तुम
तुम्हे देखकर बहुत सुकून मिलता है

कभी सोचा न था की मेरे अंदर भी
जज़्बातों का एक समंदर मिलता है  

March 30, 2014

आओ नए मेहमान

खिड़कियाँ नयी हवाओं को बुला रहीं
दरवाज़े नए मौसम को दावत दे रहे
दिये नए रंगों कि रौशनी से जगमग
कालीन नयी आहट को बुला रहे

रोशनाई नयी सोच को खोज रही
किताबें नयी कविताओं को ढून्ढ रहीं
सुराही को नए रस कि प्यास है
तस्वीरें नए किरदार को बुला रहीं

आओ नए मेहमान नयी हवाओं कि तरह
नए मौसम कि तरह, नए रंगों कि तरह
तुम्हारे नन्हे क़दमों कि आहट से
पवित्र कर दो यह घर मंदिर कि तरह

आओ नए मेहमान नयी सोच लेकर
नयी कवितायें लेकर , नए रस लेकर
अपने किरदार से जोड़ दो नए अध्याय
मेरे जीवन को नन्हे हाथों से छुकर

आओ नए मेहमान, आओ