March 22, 2009
कोयल डाल पर मौसम ढूंढती है
ये सोच कर टहलता हूँ हर शाम
कोयल डाल पर मौसम ढूंढती है
वो मिलते भी हैं तो घड़ी दो घड़ी
उस वक्त उनसे शिकवा क्या करें
ख्वाब है, आखें मूँद लें की खोल दें
कई दिन हुए मुझे ख़ुद से मिले हुए
आज शाम क्यों न चलें दोनों सैर पर
आईने से पूछो वो कितना अकेला है
अब मेरा ख्याल भी नागवार उन्हें
कभी पूरी रात बहुत छोटी लगती थी
आज शबनम से मैला हो रहा फूल है
परछाइयों के अंधेरे मे खो जाओगे
भीड़ भरे रास्तों पर सर उठा के चलो
आईने मे चाँद मिल भी जाए तो क्या
कभी बाहर चांदनी की छाओं में चलो
वो खड़ा है उस तरफ़ अकेला, गुमसुम
थोड़ा मुस्कुराओ और उसकी ओर चलो
ये बारिश नही रुकेगी आज की शाम
मौसम में एक बार तो भीगते चलो
आज की शाम न दोस्त हैं, न साथी
आज मयखाने अकेले ही चलो
March 15, 2009
Tide of Time
The sweeping tide of time
carries in its belly
so many joys, so many sorrows.
I want to hold on to things
against this tide, beyond my power.
So many moments, so many memories
Of the so many firsts -
bicycle, love, job - sweeps all.
So many fortunes, so many failures
And those who are me now
my family, and friends, and hopes;
so many faces, so many dreams
हमसफ़र
यूँ खामोश न रहो
मैं सुनूंगा तुम्हारी बातें
मुझ से कहो
न छुपाओ मुझसे अपने आंसू
बहने दूँगा मैं उन्हें
नही रोकूंगा ये सैलाब
नही करूँगा कोशिश
सहलाने की तुम्हारे ज़ख्मों को
उन्हें वक्त लगेगा
मैं तो बस तुम्हारा हमसफ़र हूँ
साथ चलूँगा
और जब हवाएं ज्यादा सर्द हो जाएँगी
तुम्हे अपनी शाल ओढा दूंगा
March 11, 2009
इस होली
सारा सूनापन गुलाल हो जाए
मेरी आखों से जो गिरे पानी
तेरे होटों पर, लाल हो जाए
छेडो कोई ऐसा राग सखी
दिल के कोने तक जो पहुंचे
बस नाम ही लूँ मैं तुम्हारा
और हवाओं मे संगीत भर जाए
ये गुलाल है मेरे गालों पर सखी
या छूट गई तुम्हारी उंगलियाँ
अब की होली रंगो कुछ ऐसा सखी
मैं ही तुम, तुम ही रंग हो जाए
March 08, 2009
सफर
Completed the poem on: 5 July, 09]
सफर पे जो निकल पड़ा हूँ
देखें रास्ते कहाँ ले जाते हैं
मैं चलता हूँ इन पर या फिर
ये मुझ पर चल कर जाते हैं
मैं चुन रहा हूँ रास्तों को
या रास्ते चुन रहे हैं मुझे
जवाबों की खोज में निकलूँ
तो सवाल घेर लेते हैं मुझे
रास्तों को नहीं कोई लगाव
उन पर चलते मुसाफिरों से
बस उतनी ही आसक्ति उनको
जितनी कदमों को पत्थरों से
मिलते हैं जो हमसफ़र
वो मुस्कुराकर चले जाते हैं
सफर पे जो निकल पड़ा हूँ
देखें रास्ते कहाँ ले जाते हैं
March 01, 2009
Asleep - Awake
[Copied over from my old blog storyteller.blogspirit.com]
I see myself sleep, careless, blank.
I see that dream leaving me.
It took me to places I won't remember.
I see my hand stretching out, trying to hold the dream back,
then it falls down to pull the sheet over.
I see the morning sun measuring my window.
Light slits my eyes, entering me to enlighten me.
I see myself wake up. And, then I go to sleep.
मौसम के साथ खिले कुछ फूल
मौसम के साथ खिले कुछ फूल
दरख्त की जड़ों पुर लग चुकी दीमक
शाख को क्या मालूम
तलवारों ने पहनी शौर्य की धार
आधी तनख्वा पे बिके सेनापति
सैनिकों को क्या मालूम
श्रद्धा से झुकाया मन्दिर मे सर
लालच और ज़हर से सना हुआ दिल
दुआओं को क्या मालूम
जब होते हैं वो बस उन्हें देखते हैं
उनकी याद फिर मे तुम्हे देखते हैं
उनको क्या मालूम, तुमको क्या मालूम
ज़िन्दगी गुज़र जाती है, हम देखते रह जाते हैं
ज़िन्दगी गुज़र जाती है, हम देखते रह जाते हैं
जिन लम्हों को ढूंढता हूँ मैं, जाने कहाँ हैं
उन्हें ढूँढने मे कई और दिन निकल जाते हैं
बचपन मे सुनी कहानियो को भूलना ही ठीक
जवानी मे परियों को ढूँढ दीवाने हुए जाते हैं
कुछ ज्यादा ही खुश मिजाज़ है आज मेरा यार
उनकी खुशी मे हम भी खुश हुए जाते हैं