शायद इन ही रास्तों पे मिलेंगे वो
ये सोच कर टहलता हूँ हर शाम
कोयल डाल पर मौसम ढूंढती है
वो मिलते भी हैं तो घड़ी दो घड़ी
उस वक्त उनसे शिकवा क्या करें
ख्वाब है, आखें मूँद लें की खोल दें
कई दिन हुए मुझे ख़ुद से मिले हुए
आज शाम क्यों न चलें दोनों सैर पर
आईने से पूछो वो कितना अकेला है
अब मेरा ख्याल भी नागवार उन्हें
कभी पूरी रात बहुत छोटी लगती थी
आज शबनम से मैला हो रहा फूल है
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