July 08, 2009

खरीदा है

उमीदों के उधार पर ख्वाबों को खरीदा है
मजबूरियों की एवज़ में वादों को खरीदा है

हरे जंगलों को काट कर बसाए शेहर
कुछ बागीचे बनाकर बहार को खरीदा है

जो वक़्त पर आते काम वो चले गए
अब साथ जाम उठाने को दोस्त खरीदा है

इज़हार-ऐ-मोहब्बत का सलीका न था
हाल-ऐ-बयान को दीवाने-ऐ-ग़ालिब खरीदा है

न हासिल हुआ जो नाम पेड़ पर कुरेदा था
अब हैसियात है तो वो पूरा जंगल खरीदा है

1 comment:

  1. wow, wonderful....

    "bazaar" sab par havi hai,

    lekin kya sab kuch kharida jaa sakta hai..

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