November 14, 2011

रंग भरने का जी करता है

इश्क में डूबे दिल को कहाँ सुकून रहता है
वो तो जाने कितने वहमों से भरा रहता है

ये महफ़िल भी बहाना है, क्या रखा इसमें
हर बार ही तेरे आने का इंतज़ार रहता है

सड़क की चहल-पहल से शहर नहीं बसते
ये तो लोगों की तहज़ीब से बसा करता है

कुछ कदम चल कर हार जाने को तैयार
ऐसे मंसूबों से कोई सफ़र किया करता है

कई सालों बाद एक तस्वीर बनायीं मैंने
मुझे भी कभी रंग भरने का जी करता है

मेरे लतीफों पर हँसते हैं सभी महफ़िल में
मेरे लतीफों में मेरा ही किरदार रहता है

October 16, 2011

नदी के उस पार इंसान खुश रहता है

नदी के उस पार इंसान खुश रहता है
इस पार हर दिल में ये वहम रहता है

उनके हौसले की कहानियाँ हैं मशहूर
बिस्तर को इल्म तकिया नम रहता है

उन्हें कितनो से दिल लगाते देखा सबने
कौन जाने उनके दिल में कौन रहता है

मीलों के सफ़र की मंजिल ये इम्तेहान
पीठ पे लदे गठरे में छुपा डर रहता है

जब हद के पार रक्तरंजित हो जाए रण
क्षितिज पे उदास गौतम खड़ा रहता है

इस अनजान शहर में बस एक आसरा
मेरे गाँव का दुश्मन पडोसी रहता है

शोहरत की बुलंदियां कौन नहीं चाहता
तारों पे बस कुछ का नाम लिखा रहता है

कभी फुर्सत मिले तो हमसे आकर मिलो
अब भी हर खड़ी तुम्हारा ख्याल रहता है

October 07, 2011

प्यार और डर

जब दिल प्यार से भर जायेगा
तब दिल डर से भर जायेगा

जितना हम चाहते हैं तुम्हे
उनता ही डरते हैं तुम्हारे लिए
दुनिया बेईमान है, वक़्त बेरहम
जब अपनों से घर भर जायेगा
अंधविश्वासों से घर भर जायेगा

अपनों की मुस्कराहट जो है
ताक़त भी है, कमजोरी भी
ज़िन्दगी उसी पर टिकी हुई
खुशियाँ बटोरने जो जायेगा
खुशियों बचाता रह जायेगा

जब दिल प्यार से भर जायेगा
तब दिल डर से भर जायेगा

September 10, 2011

क्या करते

गर शराब न होती तो क्या करते
तुझे याद करते ज़ाया हुआ करते

गली में मेला लगा लोग मिले
हम वहां जाकर भी क्या करते

उनसे मिलने का वादा तोड़ दिया
डरे हुए आशिक और क्या करते

अक्सर अपनी बेमानी पे ग़म होता है
सोचते हैं काबिल होते तो क्या करते

कुछ मुरीद मेरे आज भी हैं
कहते हैं जो चाहे जाने क्या करते

जाने मेरा लिखा कौन पढ़े
पर दिल में रखकर भी क्या करते

डूबता जा रहा हूँ मैं

यूँ खुद से भागने की कोशिश में
देखो खुद में ही कितना
डूबता जा रहा हूँ मैं
अतीत के गहरे पानी में
डूबता जा रहा हूँ मैं
आज मैं जो भी हूँ
जो देखा सीखा इतने बरस
उनके छोटे छोटे तिनकों से
बनी हस्ती मेरी
मेरी हस्ती के इन तिनकों को
बटोरता हुआ इनमे ही
डूबता जा रहा हूँ मैं
आँखें बंद करके चलो
तो रास्ते का डर नहीं रहता
पर पहुंचोगे कहाँ
इसका भी ठिकाना नहीं फिर
जो सोची मंजिल पे पहुँचने की हो लालसा
आँखें तो खुली रखनी पड़ेंगी
अपने रास्ते के नजारों में
डूबता जा रहा हूँ मैं
जाने कहाँ भाग रहा हूँ मैं
जाने क्या बटोर रहा हूँ मैं
जाने क्या देख रहा हूँ मैं
बस, डूबता जा रहा हूँ मैं

August 11, 2011

खुशियों के मैदान बनेंगे

मुश्किलों के पहाड़ टूटेंगे
खुशियों के मैदान बनेंगे

कल की तस्वीर उभरेगी
बच्चों से पूछो क्या बनेंगे

ख्वाब सोती आँखों ने देखे
भला रंगीन कैसे बनेंगे

मेरा इमान बहुत सस्ता है
मेरे महेंगे मकान बनेंगे

अब निकम्मे तो हो चुके
देखो आशिक कब बनेंगे

August 03, 2011

यूँ करना

जिस रात सुबह की आस छूट जाये
खुदा यूँ करना की मेरी नींद न खुले

अपने जब ख्वाब के किरदार न रहें
उन्हें बिस्तर पे हाथ जब न टटोले
जिस रात खुदगर्जी हावी हो जाये
खुदा यूँ करना की मेरी नींद न खुले

जब सफ़र से बड़ी हो जाये मंजिल
जब ईमान की कीमत आंकने लगें
जिस रात करवट पे सिक्के गिर जाये
खुदा यूँ करना की मेरी नींद न खुले

जब बिन दोस्तों के उठा लें जाम
बेसुध होने की तलब में पिया करें
जिस रात साकी से मन भर जाये
खुदा यूँ करना की मेरी नींद न खुले

जिस रात सुबह की आस छूट जाये
खुदा यूँ करना की मेरी नींद न खुले

July 25, 2011

पूछो

क्या गुजरी हम पर बीते साल तो पूछो
इतनी मुद्दत बाद मिले हो हाल तो पूछो

दम टूटा दर्द भरी सिसकियाँ निकलीं
कितने खंजर हुए सीने के पार तो पूछो

तेरी महफ़िल में आये तो दोस्तों के साथ
घर लौटे हम कितने सूने हाल तो पूछो

आशिक ख़ाक छाने तो काफिर कहते हो
उसे कब ज़रुरत मस्जिदों की ये तो पूछो

July 02, 2011

ये शहर नहीं छूटता

तू रहता है यहाँ इस वजह ये शहर नहीं छूटता
जाएँ और कहाँ इस वजह ये शहर नहीं छूटता

मोहल्ले में आज भी दुआ-सलाम हो जाता है
पहचाने कोई और कहाँ ये शहर नहीं छूटता

हज़ार तरकीबें की तुझे भूल जाने को मगर
दफन मेरा इश्क यहाँ ये शहर नहीं छूटता

ये खुशबू न इत्र की है न तेरे आगोश की
इन हवाओं से मिली जो ये शहर नहीं छूटता

ख़्वाबों की डोर पे उडी उम्मीदों की पतंग
अफसानों की गलियों से ये शहर नहीं छूटता

यंही ख़ाक हो जाएँ तो भी कोई याद न करे
जो मुड कर न पूछे तो भी ये शहर नहीं छूटता

May 28, 2011

ज़िन्दगी बाकि है जागो

यादों के कारवां जहाँ
संग ले जाएँ जाने कहाँ
रुक जाएँ कंही अगर
ढूंढे हमे कोई कहाँ

पल पल का हिसाब मांगो
ज़िन्दगी बाकि है जागो
गुज़रा पल धुवाँ हो जाता है
उस धुवें से दूर भागो

मंजिलों पर रस्ते नहीं रुकते
आंधी मे बरगद नहीं झुकते
पहुंचे जो ऊंची चोटियों पर
वो नदी किनारे नहीं बसते

May 19, 2011

गीत छोड़ गया कोई

साँसों पर जोर नहीं लेकिन
हौसला क्या छीनेगा कोई
कारवां रुक गया कंही पीछे
पर राही चलता रहा कोई

क़दमों के निशां नहीं बाकी
उसकी मंजिल का नहीं पता
यहाँ से गुज़रा जो मुसाफिर
पीछे गीत छोड़ गया कोई

फूलों पर आया प्यार जिन्हें
वो तोड़ ले गए संग अपने
एक मौसम वो भी आया
उनके कांटे ले गया कोई

उनकी बातों में खुशबू है
महक जाए जो मिले उनसे
कल शाम कुछ यूँ हुआ
उन्हें महका गया कोई

May 06, 2011

तुम्हे ही हमसफ़र मान बैठे

मसला हल करने जो बैठे
चमन को सरहदों से बाँट बैठे

तुम जो कुछ साथ चले
तुम्हे ही हमसफ़र मान बैठे

कश्तियाँ टूट के बिखर गयी
नाविक तिनके की आस पे बैठे

दिन में टूटा जो मजदूर
शाम को तारों की छाँव में बैठे

नायक की छवि तो उभरे
कब तक किरदार लिए बैठे

January 16, 2011

कोई नहीं जानता

मेरी दोस्ती की कोई कीमत नहीं
मुझे इस शेहेर में कोई नहीं जानता

मेरे ताज़ा ज़ख्म के हमदर्द कई
भरे ज़ख्मों का दर्द कोई नहीं जानता

उम्मीद से शुरू किया यह दिन
ख़त्म कैसे होगा कोई नहीं जानता

आज एक दोस्त को अलविदा कहा
वो फिर कब मिले कोई नहीं जानता

दोराहा

तुम जो हो कैसे हो
न ज़रा भी मेरे जैसे हो
कहते हैं तुम न अपने
काश अपने तुम जैसे हो

वक़्त गुज़रता गया
तुम्हारी आदत हो गयी
तुम्हे अलग न समझा
हमारी एक हस्ती हो गयी

सच ये भी है की तुम्हारे
ख्वाब अलग, जुदा मजिल
यूँ मुझ में जो रमे रहे
तो कैसे होंगे सब हासिल

ये बंधन जो है कैसा है
न ढीला और न बंधा सा है
इस मकाम पर खड़े हैं आज
आगे बंटता दोराहा सा है